सनातन धर्म में तुलसी को विष्णुप्रिया के रूप में जाना जाता है। तुलसी का पौधा धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण तो होता ही है अपितु आयुर्वेद के दृष्टि से भी उत्तम होता है।
जिस घर में तुलसी का पौधा होता है वहां तुलसी से संबधित से विशेष नियमों का पालन होना ही चाहिए।
हिन्दू धर्म के अनेक ग्रंथों, पुराणों और स्मृतियों में तुलसी के लिए अनेक नियम बताए गए हैं जिन में से कुछ नियमों का वर्णन निम्नवत है ,
तुलस्युपनिषद् में कहा है -
तुलसी को अनावश्यक नहीं तोड़ना चाहिए
रात्रि में तुलसी का स्पर्श नहीं करना चाहिए
पर्वों के दिन तुलसी को नहीं तोड़ना चाहिए। पर्वों पर यदि कोई तुलसी को तोड़ता है तो वो विष्णु का द्रोही हो जाता है
देवयाज्ञिककृतस्मृतिसार में कहा है की-- वैधृति में , व्यतीपात में , मंगलवार और शुक्रवार में , अमावस्या और पूर्णिमा में , संक्राति में, द्वादशीतिथि में, जननाशौच में तथा मरणाशौच में जो तुलसी को तोड़ते है वे हरि के सिर का छेदन करते है।
विष्णुधर्मोत्तर में कहा है कि - अपने जीवन के अविनाश के लिए धर्मवेत्ता पुरुष रविवार को दूर्वा और द्वादशीतिथि को तुलसी को न तोड़े।
पद्मपुराण में कहा है कि - द्वादशीतिथि में तुलसीपत्र को और कार्तिक मास में आवंले के पत्ते का जो छेदन करता है वह मनुष्य नरकों में जाता है
विष्णुधर्मोत्तर में कहा है कि - देवता के कार्य के लिए तुलसी छेदन, होम के लिए समिधाओं का और गौ के लिए तृण छेदन अमावस्या में दूषित नहीं होता।
पं. हर्ष शर्मा शास्त्री जी
टिप्पणी पोस्ट करें