[ अत्रि संहिता में वर्णन है कि दुर्भिक्ष अर्थात सूखा, अकाल अथवा भुखमरी के समय किया गया गया अन्नदान सब से उत्तम होता है। दुर्भिक्ष के समय अन्नदान करने वाले प्राणी स्वर्ग में पूजित होते हैं। तथा सुभिक्ष अर्थात जब चहुंओर सुख समृद्धि हो तब स्वर्ण का दान उत्तम होता है। ]
✹ अन्न का दान करने वाला सदैव भली प्रकार तृप्त और सदा भरा-पूरा रहता है। संवर्त,80
✹ सभी दानों में अन्न दान परमश्रेष्ठ क्यों कि यह सभी लोगों का परम जीवन हैं। संवर्त, 81
✹ क्यों कि परमेश्वर ने प्रत्येक कल्प में प्रजाओं को अन्न से उत्पन्न किया है। इसलिए अन्न से बड़ा दान ना हुआ है और ना होगा। संवर्त, 82
✹ अन्न के दान से बढ़कर और कोई दान नहीं है। अन्न से प्राणी उत्पन्न होते हैं, और जीवन धारण करते हैं। उसमे संशय नहीं है। संवर्त, 83
✹ माता, पिता, गुरुजन, पत्नी, संतान, दीन, शरण में आए हुए, अभ्यागत और अतिथि, यह पोष्य वर्ग कहलाता है। दक्ष स्मृति, अ.2, 29
✹ रिश्तेदार, बंधुजन, कमजोर, अनाथ, आश्रम, आश्रय में आए हुए और अन्य धनहीन लोगों को भी पोष्य वर्ग कहा गया है। दक्ष स्मृति, अ.2, 30
✹ पोष्य वर्क का पोषण स्वर्ग प्राप्ति कराने वाला है और इसको पोषित न करने से नरक की प्राप्ति होती है। इसलिए यत्नपूर्वक इनका पोषण करें। दक्ष स्मृति, अ.2, 31
✹ सब प्राणियों के लिए अन्नादि का विशेष रूप से प्रबंध किया जाना चाहिए और ज्ञानियों को भी भोजन दिया जाना चाहिए, अन्य करने से नर्क की प्राप्ति होती है। दक्ष स्मृति, अ.2, 32
✹ वही जीता है जिस अकेले के जीने से बहुतों के द्वारा जिया जाता है। दूसरे तो जीते हुए भी मरे हुए हैं जो केवल अपना पेट भरने के लिए जी रहे हैं। दक्ष स्मृति, अ.2, 35
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