-Nani Bai Ka Mayra-
Jaya Kishori Ji
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ALBUM NAME - NANI BAI KA MAYRA
VOICE - Jaya Kishori Ji
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PART 1 Nani Bai Ka Mayra
PART 2Nani Bai Ka Mayra
PART3Nani Bai Ka Mayra
नानी बाई का मायरा
नानी बाई रो मायरा री कथा बहोत प्रसिद्ध कथा है,राजस्थान जूनागढ़ के माहि नरसी भक्त की लाडली और बीरा ब्रह्मानंद की 'नानकी' की कहाणी कृष्ण भगता री कहानिया में से एक है,
नानी बाई रो मायरा री कथा बहोत प्रसिद्ध कथा है,राजस्थान जूनागढ़ के माहि नरसी भक्त की लाडली और बीरा ब्रह्मानंद की 'नानकी' की कहाणी कृष्ण भगता री कहानिया में से एक है,
नरसी जी खूब धूमधाम स घणो दायजो देक आपरी बेटी न परणाई, पर, दिनमान कै बेरो के लिख राखी थी, नरसिजी आपकी 56 करोड़ की संपदा दान दे कै मोड़ा होगा,
बठिण नानीबाई की गोद में कुलदिपिका आई, सासरा हारला न या बात चोखी कोणी लागी और बे नानीबाई न सतावै लागा, आश्रम में नरसिंह जी को बेटो अकाल के चालता काल को ग्रास बनगो, नानीबाई बीरां के खातर राखी ली थी पर या बात सुणकर बाई को कालेजो फाटन लागगो पर विधि के विधान के आगै कोई की ही कोणी चाल, बा राखी नानीबाई कृष्णजी के हाथा में बांध दी, इ तरिया नरसिजी कृष्ण भक्ति में रमगा और नानीबाई गृहस्थी में,
समय बितन के सागै नानीबाई की लाडली कुंवरी को ब्याव मांड दियो सासरा हरला मायरा खातर भोत बड़ी-बड़ी फ़रमाइश कर दी और सोच्या क इतो बड़ो मायरो भरणे की नरसिजी की औकात कोणी और बे ब्याव म कोणी आवगा, पर नरसिजी तो मायरो भरणे की सारी जवाबदारी आपक सावरिया न सोप के नचिता होगा और कुहा दियो के मैं ब्याँ माहि जरुर आउंगो,नानीबाई की आंख्या में ख़ुशी का आंसू झरै लागा, बेटी ने तो हरदम पीहर की सुरति से प्रेम उपजै, बठिण नरसिजी आपकै मोड़ा साथिया न लेक मायर खातर चाल पड़ा, रस्ता में गाड़ी को पहियों निकल्गो तो कृष्णजी खाती के रूप में आक पहियों ठीक कर दियो और बोल्या मैं भी सागै चालूगो.
जद नरसिजी बाई के घरा गया तो सासु-सुसरा बाई से मिलन कोणी दिया और बोल्या की पैली मायर को जाबतो करो फैर ही मिलल्यो. नानीबाई खून का घूंट पीकै रहगी, रो-रो के जी भर लाई और बोलती भी तो के, क्युकी राजस्थान की बेटी में तो ये संस्कार ही कोणी होवै की सासरे में पलट के जवाब देबो करे,सासु कह्यो की तेरो मोड़ो बाप मायरो नहीं लावगो तो तनै भी बाकै सागै पाछी भेज देवांगा,
नानीबाई सोच्यी की मैं मर जाउंगी पर पाछी कोणी जाउंगी और मरणे खातर कुंए पे चलगी, क्युकी बिन बैरो हो की भात भरण हारलो बीरों तो कदको ही स्वर्ग सिधारगो और बापूजी कनै तो कुछी कोणी,
भगत को भगवान् की याद आती है, कोई दुःख तकलीफ आती है, उसका करुण हृदय किसी संसार के लोगो को नहीं पुकारता, भक्त का हृदय केवल हरि का ही आश्रय लेता है, वह अपने हर दुःख दर्द को ख़ुशी प्रसन्नता को केवल अपने प्रभु को याद करता है, क्योंकि एक भक्त ही जानता है की केवल और केवल भगवान् के साथ जो उसका सम्बन्ध है वही शाश्वत सम्बन्ध है, वरना संसार के सम्बन्ध तो झूठे है, नश्वर है, दुखो को देने वाले माया मोह ईर्ष्या में डालने वाले है, तो हर समय भगवान् यही पुकारा करते है,
जैसी ही नानी बाई जी की करुण पुकार सुनी, मोहन से रहा नहीं गया और रुक्मणि आदि सब रानियों के साथ नानी बाई की विपदा हरने उनके भाई और भावज के रूप में चल पड़े उनका भात भरने, भात भी कैसा जो आज तक न किसी भाई न भरा है न भरा होगा, हीरे रत्न मोती, नीलम, पन्ना,मूंगा नाना रत्नो की वर्षा, वस्त्रो के भण्डार,कोई ऐसी वस्तु नहीं जिसका अभाव हो, गांव के गांव तर गए ऐसा भात प्रभु ने अपने भक्त का भरा,
नानीबाई कुंए में कूदन हाली ही थी की कृष्ण आकै पकड़ ली और बोल्या की थारो राखी को फ़र्ज़ निभावन के वास्ते थारो बीरो बन कर मैं आउंगो थारो मायरो ले के,
भगत को भगवान् की याद आती है, कोई दुःख तकलीफ आती है, उसका करुण हृदय किसी संसार के लोगो को नहीं पुकारता, भक्त का हृदय केवल हरि का ही आश्रय लेता है, वह अपने हर दुःख दर्द को ख़ुशी प्रसन्नता को केवल अपने प्रभु को याद करता है, क्योंकि एक भक्त ही जानता है की केवल और केवल भगवान् के साथ जो उसका सम्बन्ध है वही शाश्वत सम्बन्ध है, वरना संसार के सम्बन्ध तो झूठे है, नश्वर है, दुखो को देने वाले माया मोह ईर्ष्या में डालने वाले है, तो हर समय भगवान् यही पुकारा करते है,
नानी बाई पुकार रही, आओ आओ मोहना
मेरी लाज जा रही तुम्ही आय बचाओ मोहना
ग्राह ने पकड़ा जब, गजेंद्र पुकार उठा
गरुड़ चढ़ दौड़ पड़े तुरंत बचाय लिया
मैं भी पुकार रही आओ आओ मोहना ...........
नानी बाई पुकार रही, आओ आओ मोहना
मेरी लाज जा रही तुम्ही आय बचाओ मोहना
नानीबाई कुंए में कूदन हाली ही थी की कृष्ण आकै पकड़ ली और बोल्या की थारो राखी को फ़र्ज़ निभावन के वास्ते थारो बीरो बन कर मैं आउंगो थारो मायरो ले के,
बा घडी जद बाको के बर्णन हो सके है के, कृष्णजी भाई बनकर नानीबाई क सामने खड़ा हा, मैं तो सोचकर ही रोमांचित होऊ, किसी धन्य है बाई सा जो कृष्णचन्द्र सो बीरो पा लिया,
नानीबाई का तो जैया पग ही धरती पे कोणी पडे हा आखिर बीरां रूप में कृष्ण जो मिल्यो थो,
चुनडी ओढ़न को सपनो संजो के नानीबाई को मन गावै लगो- "बीरों भात भरणे आवगों, संग रुकमणी भोजाई न लावगो...."
बठिण, नरसिजी दुखी मन से नटवर नागर न बुलान खातर अरदास कर लागा,भगत की अरदास सुण के कृष्णजी आया और बोल्या की नानीबाई म्हारी बहन है मैं चलुंगो मायरो लेके
सबेरे नानीबाई के द्वार नरसिजी और बांका नटवर नागर मायरो लेके आया पूरै गाँव की आंख्या चार होगी की इयाकों मायरो न कदै आयो और न कदै आवगों, जुग-जुगा तक इ मायर की कहाणी कही जावगी,सासर हरला की जबान बंद होगी , गाँव वाला ठगा सा रहग्या और नानीबाई........नरसिजी भी धन्य होगा कि सांवरो लाज रख दी , जिंदगी भर कि भक्ति को फल दे दियो
विलक्षण थी बा घडी ....कल्पना मात्र स ही रोंगटा खड़ा होवै है.
धन्य है नरसी भक्त और किस्मत वाली है नानीबाई और बहुत खूब घणो चोखो है 56 करोड़ को मायरो भरण हारलो थारो, मेरो, और आपणै सबां को सवारियों......
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